पटना : देश के व्यावसायिक घरानों में महाशयां दी हट्टी का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है. महाशयां दी हट्टी को एमडीएच के नाम से ज्यादा जाना जाता है. जी हां यह वही एमडीएच है जिसके विज्ञापन के संगीत को घरों में बच्चे भी गुनगुनाते हैं. याद आया आपको?
जी हां, याद कीजिए उस धुन को ‘असली मसाले सच..सच, एमडीएच…एमडीएच.’ एमडीएच की पहली पहचान है इसके मसालों की शुद्धता तो दूसरी पहचान स्वयं मालिक महाशय जी हैं.
पूरी दुनिया में एमडीएच को पहचान तो मसालों के व्यवसाय से ही मिली है ,
लेकिन आपको बता दें कि एमडीएच समूह चिकित्सा और स्कूली शिक्षा के व्यवसाय में सक्रिय है.
हालांकि इसे व्यवसाय कम सामाजिक सरोकारों से जुड़़ाव ज्यादा कहेंगे.
विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत की राजधानी दिल्ली आए.
महाशय जी ने शून्य से शिखर तक की यात्रा की है.
व्यवसाय के क्षेत्र में वह मुकाम हासिल किया है जिसे पाना किसी की भी चाहत हो सकती है.
लाइव सिटीज से मुलाकात –
उनकी उम्र क्या है, इस बारे में आप अनुमान ही लगाएं तो बेहतर है.
लेकिन इस उम्र में भी उनकी चुस्ती फुर्ती और जिंदादिली देखकर आप उनके कायल हुए बगैर न रह पाएंगे, इतना तय है.
आज महाशय जी पटना में थे. लाइव सिटीज से मुलाक़ात में उन्होंने खुद से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए.
कैसे और कब शुरू हुई आपकी यात्रा? और कैसे सफर पहुंचा आपका यहां तक?
कमाल की बात ! बात ऐसी है कि 1947 में दिल्ली में जब मैंने काम शुरू किया तो उस समय दिल्ली की आबादी बहुत ही कम थी.
इतनी भीड़—भाड़ नहीं थी. मुश्किलें थीं लेकिन मेहनती और ईमानदार मुश्किलों की परवाह नहीं करते हैं.
बस परमात्मा पर विश्वास रखकर ईमानदारी के साथ मेहनत करता रहा और कामयाबी खुद ब खुद मिलती चली गई.
आज भी यह बात उतनी ही सच है. अब तो दिल्ली काफी बड़ी हो गई है. आबादी काफी बढ़ गई है.
आप देश के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर हैं.
कैसा लगता है स्वयं को एक बड़े ब्रांड अंबेसडर के रूप में देखना?
एमडीएच का विज्ञापन भी आपने स्वयं ही करने की सोची. इसकी कोई खास वजह?
क्या बात है ! (जोर की हंसी) मुझे बहुत ही खुशी होती है. और इस खुशी की वजह भी है. आखिर मैं अभी जवान हूं. (खूब जोर का ठहाका लगाते हैं.)
आपको कभी लगा कि एमडीएच जैसी कंपनी में किसी दूसरे से ब्रांडिंग कराई जाए.
या किसी और को विज्ञापन के लिए तैयार किया जाए?
सुनो, अपनी कंपनी का सबसे बड़ा ब्रांड अम्बेसेडर मानीं ही हूं.
लोग पैसा कमाए जा रहे हैं पर लोगों को शांति नहीं है. किसी को शांति नहीं है.
लोग हाय पैसा.. हाय पैसा कर रहे हैं.
हमेशा लोंगों को वो मिलता है जो उसके नसीब में लिखा है.
आओ मेरे साथ तीन बार बोलो, ओम..ओम..ओम. बोलो मजा आया? जब तुम्हारा मन अगर साफ रहेगा तो तुम दुनिया देख सकते हो.
इस बार बिहार आकर कैसा लगा आपको?
बहुत ही बढ़िया. बिहार से हमेशा से प्रेम रहा है. तीसरी बार बिहार आया हूं.
पहली बार 1988 में आया था. तब देवघर भी गया था.