लाइव सिटीज, गोविंदपुर / जहानाबाद ( अभिषेक आनंद / सौरव राज ) : बिहार के सबसे दौलतमंद रहे किंग महेंद्र का श्राद्ध कर्म कल 7 जनवरी 2022 को संपन्न हो गया. नई दिल्ली और जहानाबाद के उनके पैतृक गांव गोविंदपुर में श्राद्ध का कार्य पूर्ण हुआ. जहानाबाद का गांव गोविंदपुर इस बात का गवाह बना कि किंग महेंद्र को भावांजलि देने हजारों लोग जुटे. दल का बंधन नहीं दिल का रिश्ता देखा गोविंदपुर पहुंचे लोगों ने. जगदीश शर्मा, विजय मांझी, कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा, अभिराम शर्मा सभी थे.

लेकिन, पहचान के चेहरों से ज्यादा मायूसी आम लोगों में थी, जिनके काम आते थे किंग महेंद्र. पुष्पांजलि करते वक्त उनकी आंखें नम दिख रहीं थीं. गांव वालों के लिए तो घर का लड़का, अभिभावक और किंग के चले जाने का गम साफ दिख रहा था. लोग अपने-अपने तरीकों से निजी बातचीत में किंग महेंद्र को याद कर रहे थे.

याद कर रहे लोगों में एक बात सबों की जेहन में थी. महेंद्र प्रसाद बहुत गरीब परिवार में जन्मे थे. हालात ने गांव छोड़ने को मजबूर कर दिया था. 16 साल तक तो गायब ही रहे. परिवार के भी कई सदस्य महेंद्र प्रसाद को मृत मान चुके थे. लेकिन, जब 1980 में अमीर बनकर लौटे और जहानाबाद ने लोक सभा चुनाव में किंग बना दिया, तब भी उनके भीतर तनिक सा गुमान नहीं आया.

वे इंदिरा गांधी के करीब हो गए थे, राजीव गांधी से दोस्ती जैसी थी, फिर भी गांव में वे बस महेंद्र ही थे . चाचा- चाची / भैया- भाभी/ भाई – बहन सिर्फ अपने में नहीं, पूरे गांव और आसपास के गांव के रिश्ते को भी जानते थे . किंग होने के बाद भी बड़ों के सामने झुक जाना और आशीर्वाद लेना नहीं भूलते थे .
जैसे-जैसे वे और बड़े होते गए, जहानाबाद के लोगों को अपने और करीब करते गए . गरीबी उन्होंने बहुत करीब से देखी थी. इसलिए, उन्होंने अपनी फार्मा कंपनियों के लोगों से साफ कह रखा था-हमारे यहां नौकरी पर पहला हक जहानाबाद के लोगों को होगा . कोई थोड़ा कमजोर भी होगा, तो उसे हम ट्रेंड करेंगे और मार्केट लीडर बना देंगे.
श्राद्ध-सह-शोक सभा में जुटे लोग याद कर रहे थे, दिल्ली में उनके बंगले पर कोई पहुंच जाता था, तो कैसे वे प्योर जहानाबादी और बिहारी हो जाते थे. यार-दोस्त की तरह बात करते थे. मदद की थैली तो कभी बंद रखी ही नहीं उन्होंने. एरिस्टो फार्मा को हर किसी की जरुरी जरुरत को पूरा करने को तैयार रखते थे. लेकिन, झूठ बात उन्हें बर्दाश्त नहीं होती थी.
दुनिया की सैर किंग महेंद्र की हॉबी थी. तभी तो उनका नाम लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में दर्ज किया गया था. करीब 210 देशों की यात्रा की थी. यूनाइटेड नेशंस में रजिस्टर्ड शायद एक ही देश इस रिकार्ड के बनते वक्त उनकी यात्रा के बगैर था. किसी एक वर्ष में तो उन्होंने 80 देशों की यात्रा की थी.
जहानाबाद के लोग याद कर रहे थे, कैसे उन्होंने उमेश शर्मा उर्फ भोला शर्मा को भाई से अधिक बेटे की तरह पाला- पोसा. भोला शर्मा ने भी उन्हें पिता ही माना. तभी तो श्राद्ध कर्म के सूचना कार्ड पर भोला शर्मा ने प्रकाशित कराया-मेरे पिता तुल्य अग्रज. एरिस्टो व दूसरी कंपनियां कैसे सबसे आगे, इसके लिए दोनों लगे रहे.
बाद में, जहानाबाद और बिहार के पोलिटिकल कनेक्ट और सोशल रिस्पांसिबिलिटी की पूरी जिम्मेवारी किंग महेंद्र ने पूरे तौर पर भाई भोला शर्मा पर ही छोड़ रखी थी. वे अपने लीडर को सबसे आगे रखते थे. 2006 में वे नीतीश कुमार से जुड़े. राज्य सभा जाना तो सदैव बना ही रहा, लेकिन नीतीश कुमार से रिश्ता इसलिए बना, क्योंकि बिहार को बचाना था. और बगैर नीतीश के यह संभव नहीं था.
नीतीश कुमार ने कितना बदला बिहार, जब कोई दिल्ली उनसे मिलने को जाता या फिर वे देश के बाहर जाते और अप्रवासी भारतीयों से मिलते तो जरुर बतलाते.. जहानाबाद के लोगों ने बताया, किंग महेंद्र को अपना प्रचार बिलकुल पसंद नहीं था. ओकरी में मां की स्मृति में कालेज खुलवाया. कुछ साल पहले मुख्य मंत्री नीतीश कुमार आए थे. आगमन के पहले जब उन्हें जानकारी मिली कि लोगों ने नीतीश कुमार के साथ उनकी बहुत सारी तस्वीरें टंगवा दी हैं, तो सीधे मना कर दिया. कहा, मेरी तस्वीरों को हटा दीजिए. मां की कुछ रहने दीजिए. बाकी सभी तस्वीरें नीतीश कुमार की रहेगी, वे हमारे अतिथि हैं और इसलिए उनका सम्मान सबसे अधिक.
तो, जहानाबाद के लोग अब बस इतना चाहते हैं कि किंग महेंद्र के सपनों को साकार करने का बचा काम ठीक से उनके भाई भोला शर्मा करें. वक्त बताएगा, लोगों की उम्मीद कहां तक पूरा करते हैं भोला शर्मा.