
गया (पंकज कुमार) : आज से 14 वर्ष पूर्व गया शहर के अति सुरक्षित क्षेत्र मानें जाने वाले जिला जज आवास के मुख्य द्वार और सर्किट हाउस के बगल में इंजिनियर सत्येन्द्र दुबे की हत्या गोली मारकर अपराधियों ने कर दी थी. राष्ट्रीय राजमार्ग के गया के महाप्रबंधक के पद पर सत्येन्द्र दुबे घटना के समय पदस्थापित थे. दुबे हत्या काण्ड को लेकर पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रतिरोध हुआ था. आज शनिवार को नालंदा में उदय मल्लाह की एसटीएफ द्वारा की गई गिरफ्तारी के बाद सत्येन्द्र दुबे की याद फिर ताजा हो गई.
27 नवंबर 2003 को हुए सत्येन्द्र दुबे हत्या काण्ड में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई सरकार पर भी अंगुली उठी थी. प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इस बात को लेकर होड़ मची थी कि कैसे दुबे हत्या काण्ड को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई सरकार के साथ जोड़ दिया जाए. लेकिन उस वक्त गया से इस संवाददाता द्वारा क़रीब एक महीने तक श्रृंखलाबद्ध रिपोर्टिंग के माध्यम से प्रमाणित करने में सफल रहा कि घटना में पीएमओ कार्यालय की कोई भूमिका नहीं है. घटना महज अपराधियों के प्रतिरोध करने के कारण घटित हुई है.
उस वक्त गया के पुलिस अधीक्षक संजय सिंह थे. संजय सिंह और सत्येन्द्र दुबे आईआईटी कानपुर के न केवल बैचमेट थे. बल्कि रूममेट भी रहे थे. गया पुलिस की जांच को लेकर कई सवाल उठा. राज्य सरकार ने देश-विदेश में हो रही फजीहत से बचने के लिए दुबे हत्या काण्ड की जांच सीबीआई को सौंप दिया. 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी एवं सीबीआई के तत्कालीन एसपी संजीव खिरवार, जो अभी हरियाणा के गुड़गांव के पुलिस कमिश्नर हैं, ने दुबे हत्या काण्ड की जांच की. घटना को अंजाम देने वाले अपराधी पकड़े गए. इनमें गया के कटारी गांव का उदय मल्लाह भी शामिल था.
सीबीआई की अदालत ने सभी आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई. सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. उदय न्यायालय साल 2010 में सीबीआई कोर्ट परिसर से पटना पुलिस को धोखा देकर फरार हो गया. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था, आज उदय एक बार फिर नालन्दा में एसटीएफ के हत्थे चढ़ गया.
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