
शेखपुरा(ललन कुमार) : बिहार के सभी सरकारी स्कूलों में संचालित एमडीएम के चावल आपूर्ति में घपला ही घपला की बात सामने आ रही है. नाम नहीं छापने की शर्त पर स्कूलों में एमडीएम संचालित करने वाले कई हेडमास्टरों ने इसका खुलासा करते हुए कहा कि एमडीएम में जो चावल उपलब्ध किया जा रहा है वह बेहद घटिया क्वालिटी का होता है. प्रशासनिक डंडा चलने के डर से उनके स्कूलों में उस तरह के आपूर्ति किये गए चावल को स्वीकार करना पड़ता है.
चूंकि जिला के प्रशासनिक पदाधिकारी का फरमान जारी रहता है कि स्कूलों में एमडीएम बन्द नहीं होना चाहिए. चावल जैसा भी हो उसका एमडीएम बनाते रहिए. एक दिन एमडीएम बन्द रहने पर कार्रवाई कर दी जाती है. उन्होंने कहा कि स्कूलों में चावल आपूर्ति करने वाला जो चावल उपलब्ध कराता है. वह 50 किलो के बैग में 40 -45 किलो ही रहता है. साथ ही घटिया गुणवत्ता वाला चावल रहता है. उसे अच्छा चावल और 50 किलो के बैग की दर से इतना बैग का चावल प्राप्त किया आपूर्तिकर्ता अपने पंजी पर हेडमास्टर से लिखवा लेते हैं. सही मात्रा का बैग नहीं रहने और घटिया गुणवत्ता वाला चावल रहने का विरोध यदि कोई हेडमास्टर करते हैं तो वरीय पदाधिकारी विरोध करने वाले शिक्षक को सस्पेंड कर देंगे.
इसलिए कोई हेडमास्टर विरोध नही करता है. जैसे चल रहा है वैसे ही चलने देते हैं. उनको इससे क्या मतलब है सरकार जाने. उन शिक्षकों ने कहा कि जो चावल स्कूलों में उपलब्ध कराया जा रहा है बाजार में उसकी कीमत मुश्किल से 15-16 रु होगी.अरवा चावल रहता है. चावल मिलान में यदि हेडमास्टरों से स्टॉक में गड़बड़ी हो जाती है तो पदाधिकारी द्वारा 32.32रु की दर से उनके सैलरी से कटौती कर ली जाती है. जबकि 15-16 रु किलो वाला चावल स्कूलों में उपलब्ध कराया जाता है. उन हेमास्टरों ने कहा कि ये जो एमडीएम चल रहा है वह वर्ल्ड बैंक द्वारा दी गयी अनुदान की राशि से चल रही है.
केंद्र सरकार को स्कूली बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए अनुदान में अरबो खरब राशि बर्ल्ड बैंक द्वारा दी जा रही है. लेकिन उसका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है केवल इस राशि को नीचे से लेकर ऊपर तक लुटा जा रहा है. वहीं इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र प्रसाद ने सरकार से इस मामले में जांच कर कार्रवाई की मांग की है. इधर इस मामले में एमडीएम पदाधिकारी से मोबाइल संपर्क नही हो पाने के चलते उनकी कोई प्रतिक्रिया नही मिल पाई है.
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